संदर्भ : सर्वदलीय बैठक में प्रधानमंत्री मोदी का बयान
- संजीव माथुर -
भारत-चीन मसले पर केंद्र की ओर से बुलाई गई सर्वदलीय वर्चुअल बैठक में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ओर से दिए गए बयान कि लद्दाख में कोई भी भारतीय सीमा में नहीं घुसा और किसी भी पोस्ट पर कब्जा नहीं है, पर सवाल उठने के बाद प्रधानमंत्री कार्यालय ने लिखित में स्पष्टीकरण जारी किया। इसमें कहा गया कि प्रधानमंत्री मोदी की वास्तविक नियंत्रण रेखा पर भारतीय सीमा की ओर चीनी सेना की कोई मौजूदगी न होने वाली टिप्पणियां सशस्त्र बलों की वीरता के बाद के हालात से जुड़ी हैं। जारी बयान में कहा गया कि सैनिकों के बलिदानों ने ढांचागत निर्माण और 15 जून को गलवान में अतिक्रमण की चीन की कोशिशों को नाकाम कर दिया। बयान में कहा गया है कि सर्वदलीय बैठक में पीएम मोदी ने जो कहा है उस पर जानबूझकर गलत धारणा फैलाई जा रही है। सर्वदलीय वर्चुअल बैठक के पूरे क्रम को देखें तो सभी दलों को सुनने के बाद प्रधानमंत्री का बयान विपक्ष को 'चकित और हतप्रभ' करने वाला क्यों लगा होगा? वर्चुअल मीटिंग के बाद प्रधानमंत्री के समापन उद्बोधन को अचानक टीवी पर आम जनता को भी संदेश के रूप में दिखाना विपक्ष को समझ में आया होगा?
चूंकि प्रधानमंत्री मोदी पर एकतरफा संवाद करने का आरोप अक्सर लगता रहता है, तो क्या इस वर्चुअल मीटिंग के अंत में मोदी के बयान के बाद विपक्ष के पास पुन: बोलने का कोई विकल्प नहीं था? और फिर वही सबसे बड़ी बात - 'मोदी को समझना मुश्किल क्यों?' आखिर क्यों पीएम मोदी के उस बयान को समझना मुश्किल हुआ जो 130 करोड़ देशवासियों के सामने टीवी पर चला। पूर्व में जब-जब पीएम मोदी के टीवी पर संदेश चले हैं, जैसे नोटबंदी, लॉकडाउन आदि के संदर्भ में, स्पष्ट रूप से तारीख और समय का स्पष्ट जिक्र शामिल रहा है। आज दिनांक को रात 12 बजे से.... स्पष्ट रूप से बोला गया ही था। फिर क्यों सर्वदलीय बैठक में दिए बयान पर प्रधानमंत्री कार्यालय को स्पष्ट करना पड़ा कि प्रधानमंत्री मोदी की वास्तविक नियंत्रण रेखा पर भारतीय सीमा की ओर चीनी सेना की कोई मौजूदगी न होने वाली टिप्पणियां सशस्त्र बलों की वीरता के बाद के हालात से जुड़ी हैं। कोई तारीख नहीं, कोई समय नहीं? शायद यही स्पष्टता में कमी विपक्ष को खल रही है। लेकिन आखिर फिर वही सवाल - 'मोदी को समझना मुश्किल क्यों?' कोविड 19 के मद्देनजर वर्चुअल मीटिंग रखी गई। जब राज्यसभा के चुनाव में जनप्रतिनिधि वोट के लिए एकत्र हो सकते हैं तो देश के गंभीर मसलों पर सर्वदलीय बैठक वर्चुअल ना होकर आमने-सामने नहीं हो सकती थी? क्या ऐसी बैठक ज्यादा कारगर नहीं होती? गंभीर मसलों पर वर्चुअल मीटिंग में खुले में हर बात ना पूछी जा सकती है, ना बताई जा सकती है। तो क्या किसी के लिए वर्चुअल मीटिंग सुविधाजनक और अन्य के लिए मात्र औपचारिकता रह गई, जो बाद में ट्विटर पर फिर से सवाल उठाकर वास्तविक स्थिति समझना चाह रहे हैं। खैर, आप समझे या नहीं? समझने वाले शायद ना कहें कि मोदी को समझना मुश्किल है!