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जो 70 सालों में नहीं हुआ, क्या यही देखना चाहते थे?

संदर्भ : देश में पहली बार डीजल हुआ पेट्रोल से महंगा 


- संजीव माथुर -
जिस देश में पिछले 65 सालों में कुछ खास नहीं होने की बातें कहते-सुनते 'चमत्कृत' सरकार चुनी गई, उस देश में पहली बार डीजल ने पेट्रोल को पछाड़कर देशवासियों को ही 'चमत्कृत' कर दिया। देश की राजधानी दिल्ली में डीजल, पेट्रोल से महंगा हो गया है। देश में पहली बार हुआ है कि डीजल की कीमत पेट्रोल से ज्यादा हो गई। दिल्ली में पेट्रोल की कीमत 79.76 जबकि डीजल की कीमत 79.88 रुपए प्रति लीटर हो गई है। तेल कंपनियां पिछले 18 दिन से लगातार तेल की कीमतें बढ़ा रही हैं।
'बहुत हुई महंगाई की मार, अबकी बार मोदी सरकार' के नारों के साथ वर्ष 2014 में सत्ता में आए गुजरात मॉडल के प्रणेता को महंगाई का कारण शायद तेल की कीमतें नहीं लगती होंगी, वरना तेल पर टैक्स लगातार नहीं बढ़ता। अप्रैल 2014 में दिल्ली में एक लीटर डीजल पर करीब 10 रुपए एक्साइज ड्यूटी और वैट के चुकाने होते थे। अब आम आदमी को डीजल पर 50 रुपए सिर्फ टैक्स के चुकाने पड़ रहे हैं। पेट्रोल और डीजल पर केंद्र सरकार सेंट्रल एक्साइज ड्यूटी लगाती है और राज्य सरकारें वैल्यू एडेड टैक्स यानी वैट वसूलती हैं। अप्रैल 2014 में जब क्रूड ऑयल 105 डॉलर प्रति बैरल के आसपास था, तब दिल्ली में डीजल करीब 55 रुपए प्रति लीटर था। इसमें बेस प्राइस, किराया भाड़ा और डीलर कमीशन 45.5 रुपए था। इसके ऊपर 10 रुपए सरकार टैक्स के तौर पर वसूलती थी। यह करीब 18 प्रतिशत होता था। आज क्रूड ऑयल 42 डॉलर प्रति बैरल पर है। 16 जून के प्राइस ब्रेकअप के अनुसार डीजल 75 रुपए पर है। इसमें बेस प्राइस, किराया भाड़ा और डीलर कमीशन 25.76 रुपए है। इसके ऊपर 50 रुपए सरकारें टैक्स के तौर पर वसूल रही है। यानी करीब 66 प्रतिशत तो टैक्स के रूप में सरकारें ही वसूल रही हैं।
14 मार्च को केंद्र सरकार ने पेट्रोल-डीजल पर सेंट्रल एक्साइज ड्यूटी 3 रुपए प्रति लीटर बढ़ा दी थी। फिर 5 मई को इसमें अचानक पेट्रोल पर 10 रुपए और डीजल पर 13 रुपए प्रति लीटर का इजाफा कर दिया। पेट्रोल पर अब 32.98 और डीजल पर 31.83 रुपए प्रति लीटर एक्साइज ड्यूटी लगती है। इसी के साथ दिल्ली सरकार ने मई में पेट्रोल पर वैट 27 से बढ़ाकर 30 प्रतिशत जबकि डीजल पर यह 16.75 से करीब दोगुना बढ़ाकर 30 प्रतिशत कर दिया था। कोरोना संकट के दौरान जहां आम आदमी की आमदनी घटी है या बंद हो गई है, उस दौर में क्या सरकारों का इस तरह टैक्स के रूप में बड़ी रकम जनता की जेब से निकालने को संगठित लूट की संज्ञा नहीं दी जा सकती?



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