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आत्मनिर्भर भारत अभियान पर वित्त मंत्री की प्रेस कॉन्फ्रेंस और बैकड्राप में विदेशी कंपनियों के लोगो?

- संजीव माथुर -
कोरोना संकट के मद्देनजर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ओर से घोषित 20 लाख करोड़ के आत्मनिर्भर भारत अभियान के पैकेज के ब्यौरे को पांच दिनों तक वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में विस्तार से बताया। चूंकि प्रधानमंत्री ने पैकेज की घोषणा करते वक्त 38 बार आत्मनिर्भर शब्द का इस्तेमाल किया था (एक मीडिया रिपोर्ट के अनुसार) तथा साथ ही कहा था कि लोकल को हमें अपना जीवन मंत्र बनाना होगा, 'लोकल' के लिए हमें 'वोकल' बनना होगा, इस परिप्रेक्ष्य में जाहिर है कि वित्त मंत्री की प्रेस कॉन्फ्रेंस में ऐसी घोषणाएं होनी चाहिए थी, जो 'लोकल' को सीधे राहत पहुंचाती। हालांकि इस पांच दिवसीय वृहत बजट रूपी पैकेज घोषणा कार्यक्रम के दूसरे-तीसरे दिन ही जानकारों की प्रतिक्रियाएं आने लगी थीं कि यह मोदी सरकार की पूर्व घोषणाओं की ही 'रिपैकेजिंग' है। खैर, इस पैकेज पर फिलहाल चर्चाएं जारी रहेंगी और यह देखने वाली बात होगी कि कोरोना संकट से जूझते देशवासियों को यह कैसे और कितनी राहत दे पाएगा। लेकिन प्रेस कॉन्फ्रेंस की एक बात ने ध्यान आकृष्ट किया कि आत्मनिर्भरता को लेकर वित्त मंत्री बोल रही थीं और उनके बैकड्राप में राष्ट्रीय चिह्न के साथ ट्विटर, फेसबुक और इंस्ट्राग्राम के लोगो प्रमुखता से लगे हुए थे। चूंकि सरकार का सूचना विभाग पीआईबी विदेशी कंपनियों के मालिकाना हक वाले सोशल मीडिया नेटवर्क ट्विटर, फेसबुक, इंस्ट्राग्राम का भी इस्तेमाल करता है, लेकिन इनके लोगो को हमारे राष्ट्रीय चिह्न के साथ प्रमुखता से लगाना क्या संदेश देता है? संभव है कि कुछ को यह बहुत छोटी सी बात लगे, लेकिन 'आत्मनिर्भरता', 'वोकल फॉर लोकल' जैसे भारी भरकम शब्दों का इस्तेमाल जहां हो रहा हो, वहां तो इनसे बचना ही चाहिए....!!



पुनश्च : आत्मनिर्भर भारत अभियान के पैकेज की अंतिम प्रेस कॉन्फ्रेंस में एक प्रश्न के दौरान वित्त मंत्री विपक्ष पर भड़क उठीं। गौरतलब है कि कांग्रेस नेता राहुल गांधी शनिवार को दिल्ली में सुखदेव विहार के पास प्रवासी मजदूरों से मिलने पहुंचे थे। प्रेस कॉन्फ्रेंस में वित्त मंत्री ने राहुल गांधी का नाम लिए बिना कहा कि प्रवासी जब पैदल जा रहे हैं तो उनके साथ बैठकर बात करके उनका समय बर्बाद करने की बजाय बेहतर होता कि उनके बच्चों या उनके सूटकेस को उठाकर पैदल चलते। क्या यह ड्रामेबाजी नहीं है? अब चूंकि वित्त मंत्री ने प्रवासी मजदूरों के समय बर्बाद करने का मुद्दा उठा ही दिया है तो क्या उनको यह जवाब नहीं देना चाहिए कि लॉकडाउन-1 के बाद जब प्रवासी पैदल ही सड़कों से जाने लगे थे तो सख्त लॉकडाउन के नाम पर उन्हें रोककर तथा उसके बाद लॉकडाउन-3 के ऐलान तक उनके भेजे जाने का पुख्ता इंतजाम नहीं करके क्या 40 दिन का समय बर्बाद नहीं किया? यह तो शुक्र है कि मीडियाकर्मियों पर प्रश्रचिह्न नहीं लगाया कि आप लोग भी रिपोर्टिंग करते समय प्रवासियों से बात करके क्यों उनका समय बर्बाद करते हो? 



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