- अंबुज टांक -
गुलाबी शहर के परकोटे के जिस हिस्से में कर्फ्यू लगा है, उन गलियों को और बचपन के दिनों को याद करते हुए बस ये कहना था कि बहुत समय तक उनसे बस निकलना था। अब लौटने का दिल चाहता है लेकिन मुमकिन सा नहीं। कई बार माता-पिता को साथ ले जाने की बात हुई, लेकिन वो जमीन छोड़ने को माने नहीं। अक्सर मां का ख्याल आता रहा। मां ही तो थी, सबसे खास। मां नहीं रही। तबीयत और कोराना ने ऐसे हालात बनाए कि मां को सुपुर्देखाक भी ना कर सका। यूं लगा कि 53 साल के इरफ़ान खान को जब हालात ने कहा मां के जनाजे को कंधा नहीं देगा तू, तो वो मां के आंचल में चला गया...।
टोंक में नवाबियत के साथ पला-बढ़ा लड़का सिनेमा की तरफ ऐसा आकर्षित हुआ कि एमए की पढ़ाई करते हुए ड्रामा करने नेशनल स्कूल में चला गया। पिता के साथ कुछ ज्यादा बनी नहीं, लेकिन काबिलियत और जुनून की हद से स्कॉलरशिप से दिल्ली में रहने लगा।
उनकी मां का तीन दिन पहले ही इंतकाल हुआ, स्वास्थ्य कारणों से वो जयपुर नहीं आ सके थे। अपने पुराने इंटरव्यू में शहर की महफिलों और नाटकों से भी ज्यादा उन्हें जो याद आता था, वो था, 'मां का प्यार' , और 'पतंग और माझे वाली संक्रांति' । महीनों पतंग उड़ाने और लूटने की यादें। तंग गलियों में 'वो काटा का शोर', पर सब छोड़ निकल गए थे। एक्टिंग के जुनून को जीने। काबिलियत को मुकाम दिलाने। उन्होंने कहा था कि "एक अच्छे समाज की निशानी वह है, जहाँ प्रतिभा का सम्मान किया जाता है।" और वो सम्मान उन्होंने अर्जित किया।
इंडियन टीवी के क्लासिकल दौर के सीरियल चंद्रकांता, उपनिषद गंगा से लेकर भारत एक खोज में काम किया। किसी किरदार को छोटा नहीं माना। जो किरदार मिला उसे जिंदादिली से निभाया। चमक-धमक वाले रोल उन्हें आकर्षित ही नहीं करते थे, वो कहते थे, "मैं रोमांटिक भूमिकाएं नहीं करना चाहता, जहां मुझे एक गाने के लिए सिंक करना पड़े। एक भूमिका जो एक नए स्तर पर रोमांस की खोज करती है, मेरे लिए उपयुक्त होगी।"
उन्हें ऐसी फिल्में करनी थी जिनसे वे जुड़ सके। वो कहते, "मैं एक अभिनेता के लिए एक फिल्म करने और उससे ना जुड़ने की तुलना में अधिक दयनीय स्थिति के बारे में नहीं सोच सकता। और मैं भगवान से प्रार्थना करता हूं कि मैं उस स्थिति का सामना कभी न करूं।" उनके करिश्माई तरीके से किरदार निभाने के अंदाज को देखकर कईयों ने उन्हें हिट हीरो बनने की बात की। उन्होंने कहा, "मैं व्यावसायिक सिनेमा के सांचे में फिट होने के लिए तैयार नहीं हूं।" क्यूंकि वो बॉलीवुड में हिट होने नहीं, किरदारों में फिट होने आए थे। अपने किरदारों से उन्हें बेहद प्रेम था। वो मानते थे कि ," मैंने कई किरदार निभाए हैं, जिन्होंने मुझे अपना लिया है और मुझे स्वामित्व दिया है।"
उन्हें सिनेमा की बहुत नॉलेज थी, हो भी क्यों ना देश से लेकर विदेश तक उन्होंने काम किया। पश्चिमी सिनेमा ने भी उनके हुनर को पहचाना। उन्होंने दो ऑस्कर जीतने वाली फिल्मों में काम किया- लाइफ ऑफ पाई और स्लमडॉग मिलेनियर। उनके लिए दर्शक महत्वपूर्ण थे। वे कहते थे "एक फिल्म आपको भावनात्मक और बौद्धिक रूप से प्रभावित करती है।" और अगर फिल्म देखने के बाद जब आप थियेटर से बाहर आते हैं और आप उस फिल्म के बारे में बात नहीं करते हैं या उसे याद नहीं करते हैं, तो यह मुझे निराश करता है।" यह उनका खुद के काम से प्यार नहीं और क्या है? वे कहते थे कि लोग उनका अभिनय देखना चाहते है चेहरा नहीं। काम और दर्शकों के लिए यह उनकी ईमानदारी ही तो है।
हॉलीवुड फिल्मों के साथ उन्होंने कभी भी बॉलीवुड फिल्मों में काम करना नहीं छोड़ा। उन्होंने हमेशा दोनों में बैलेंस बनाने की बात की। 2018 के समय जब उन्हें अपनी बीमारी का पता चला, उनके पास कई हॉलीवुड फिल्मों के ऑफर थे। लेकिन काम करने की हालात में आते ही उन्होंने चुना 'इंग्लिश मीडियम' को। वे कहते "मैं भारत को छोड़कर कहीं और नहीं रह सकता।" आज भी उनके पत्र की पंक्तियां "आखिर हम तो उसके हाथ की कठपुतलियां " उनके बहुत कुछ करने की चाह को दर्शाती है। इंग्लिश मीडियम के प्रोमोशन के समय वायरल हुए उनका ऑडियो भी अपने आप में उनकी जीने की चाह को दिखाता है।
उनका ह्यूमर भी उम्दा लेवल का था। वे बार-बार बॉलीवुड के खानों से अपनी प्रतिस्पर्धा को मजाक में लेते रहे। इसे लेकर तो फिल्मफेयर में शाहरुख के साथ पूरा स्केच तक कर चुके है। वे चुटकी लेते हुए कहते कि "हमारे बॉलीवुड सितारे जो 100 करोड़ फिल्मों का हिस्सा होने की बात करते हैं, मुझे लगता है कि मैं 1000 करोड़ क्लब से संबंधित हूं।" पर उन्होंने कभी दौलत को वो तरजीह दी ही नहीं। उनको अपने काम से प्यार था। उन्हें किरदारों में जीना था। दुनिया भर से मिल रही इज्जत आज उनकी कमाई दिखा रही है। अच्छे लोग अक्सर जल्दी चले जाते है। वे भी जल्दी ही छोड़कर चले गए। उनकी मजबूती को उनका संघर्ष खुद बयां करता है। एक ऐसा कलाकार जिसने हर शेड का किरदार निभाया, शिद्दत से निभाया, डराया, हंसाया, रुलाया। बुलंदियों पर पहुंचते हुए, किसी को नीचे नहीं गिराया। मुझे याद नहीं उन्होंने कभी कोई कंट्रोवर्सी की हो। खबरों में बने रहने की कोई होड़ की हो। किसी कलाकार के साथ लिंकअप की खबर आई हो। तभी तो आज हर आंख नम है। सबको उनसे उम्मीद थी कि कुछ और किरदार करेंगे। बॉलीवुड को जीतकर हॉलीवुड को भी जीत लेंगे।
जो अपनी आंखो से बहुत कुछ बयां कर देता है। आवाज़ ऐसी की हर डॉयलॉग सुपर हिट डॉयलॉग लगे। आज हम देखते हैं कि जहा देश में हर ओर हिन्दू मुसलमान होता है। वो आज कहीं गुम है। हर ओर बस इज्जत है, प्यार है। सबकी आंखें नम है। दौलत तो लोग कमा ही लेते है। नफरत भी लोग बेच ही रहे है। लेकिन आपको क्या मिला, इसको देखे तो दिखता है बेशुमार मोहब्बत, कोई भी कलाकार जब चला जाता है, तो सभी कलाकार याद करते है, लेकिन आपको नेता हो या खिलाड़ी, पक्ष हो या विपक्ष, देशी हो या विदेशी सब याद कर रहे। सबको ऐसा लग रहा मानो उनके परिवार का एक हिस्सा जो उनसे जुड़ा था,चला गया। आपकी अदाकारी का वो लाइव अहसास ही था कि सबको व्यक्तिगत नुकसान सा दर्द है। गम है लेकिन आपके लिए है बस मोहब्बत। कसक है, आप जल्दी छोड़ गए। लेकिन इतनी मोहब्बत है कि आज इंटरनेट पर बस एक नाम से स्क्रीन चमक रही ' #इरफान_खान ' । जो जन्मे थे साहिबजादे इरफान खान के नाम से। अपने नाम में दो आर वाले इरफान। हमारे शहर वाले इरफान, जो पूरे देश के है वो इरफान। वर्ल्ड सिनेमा में भारत के प्रतिनिधि 'इरफान खान'।
इरफान खान बने है, उनके डॉयलॉग डिलेवरी से, उनके अंदाज से, उनकी आवाज से, उनकी मेहनत से। कुछ उनके ऐसे डॉयलॉग जो हमें ताउम्र जीना सिखाएंगे :
शराफत की दुनिया का किस्सा ही खत्म... अब जैसी दुनिया वैसे हम :- जज्बा
रिश्तों में भरोसा और मोबाइल पे नेटवर्क न हो तो लोग गेम खेलने लगते है :- जज्बा
मोहब्बत है इसलिए जाने दिया... ज़िद्द होती तोह बाहों में होती :- जज्बा
आदमी जितना बड़ा होता है... उसके छुपने की जगहें उतनी ही कम होती है :- कसूर
लकीरें बहुत अजीब होती है... खाल पे खिच जाये तो खून निकाल देती है ... और ज़मीन पे खिच जाये तो सरहदें बना देती है :- गुंडे
अक्सर हर देश बड़ी समस्याएं सुलझाने के चक्कर में यह भूल जाता है ... कि उसकी कितनी बड़ी कीमत उसके अपने लोगों को चुकानी पड़ती है :- गुंडे
किस्मत की एक ख़ास बात होती है ... कि वह पलटती है :- गुंडे
इश्क़ का एक प्रॉब्लम है ... अगर एक की लगी तो दूसरे की भी लगनी है कभी न कभी :- ये साली जिंदगी
प्यार में जो गलत है... वह भी सही है :- दी एक्सपोज
ग़लत वक़्त में इंसान गलत फैसला लेता है :- न्यूयॉर्क
और क्या देखना बाकी है... आपसे दिल लगा के देख लिए :- दी किलर
आप जिस्म है, मैं रूह... आप फानी है, मैं लाफ़ानी :- हैदर
यह शहर हमें जितना देता है... बदले में कहीं ज़्यादा हमसे ले लेता है :- लाइफ इन ए मेट्रो
कई बार छोटी-छोटी नदानियो से नुकसान बड़ा हो जाता है :- आन मेन एट वर्क
शौक दो तरह के होवे है... एक तो वह जोह समय के साथ ख़तम हो जावे है ... और दूजा वह जो समय के साथ मक़्सद बन जावे है :- अंग्रेजी मीडियम
और जान से मार देना बेटा, हम रह गए न, मारने में देर नहीं लगाएंगे, भगवन कसम.:-- हासिल
बीहड़ में तो “बाघी” होते हैं, “डकैत” मिलते हैं पार्लियामेंट में :- पान सिंह तोमर