जयपुर। पंडित जवाहर लाल नेहरू पर ऐशोआराम का आरोप लगाने वाले इस सत्य को छिपाते हैं कि तमाम ऐश्वर्य छोड़ उन्होंने खुद को आज़ादी की लड़ाई में झोंक दिया। इससे साबित होता है कि देश पोस्टट्रूथ दौर से गुज़र रहा है। यह विचार जाने-माने विद्वान एवं हरिदेव जोशी पत्रकारिता विश्वविद्यालय के परीक्षा नियंत्रक डॉ. आलोक श्रीवास्तव ने जवाहर कला केंद्र में आयोजित संगोष्ठी में साझा किये। वे सेमिनार के दूसरे सत्र में 'नेहरू - ज्ञात एवं अज्ञात' विषय पर बतौर मुख्य वक्ता बोल रहे थे।
उन्होंने कहा कि यह सच है कि नेहरू के कपड़े पेरिस धुलने जाते थे। यह भी विदित है कि तब नेहरू के आवास इलाहाबाद के आनंद भवन में खुद की बिजली और स्विमिंग पूल था। तब उनके पिता बैरिस्टर मोतीलाल नेहरू एक केस लड़ने के हज़ारों रुपए लेते थे। आज इन बातों साथ यह सत्य कुहासे में छिपाने की साज़िश भी चल रही है कि उन्होंने और उनके पिता मोतीलाल ने देश की आज़ादी की जंग में कूद खुद को वर्गच्युत यानी डिक्लास किया। इतना ही नहीं 1930 में अपना विशाल आनंद भवन राष्ट्र के लिए समर्पित कर दिया था। आज की पीढ़ी को यह भी जानकारी होनी चाहिए कि पंडित नेहरू ने टीबी से लड़ रही पत्नी और बड़ी हो रही बेटी इंदिरा के मोह पर स्वतन्त्रता आंदोलन को तवज्जो दी। युवावस्था के 10 साल से ज्यादा समय जेल में रहे। डॉ. श्रीवास्तव ने डॉ. पुरुषोत्तम अग्रवाल के कथन 'कृतघ्नता से बड़ा कोई पाप नहीं' को उद्धृत करते हुए कहा कि हमारे राष्ट्र निर्माताओं के योगदान को अनदेखा करना और उनकी खिल्ली उड़ाना ही कृतघ्नता है।
उन्होंने कहा कि कोई नेहरू की आलोचना कर सकता है, लेकिन उनसे घृणा करे यह तो उनके प्रति नहीं, बल्कि अपनी पीढ़ियों के प्रति अपराध है। देश का दुर्भाग्य है कि आज ऐसे ही अपराध का दौर है। यह पोस्टट्रूथ दौर है। जो अमेरिका के इराक पर हमले से शुरू हुआ। तब इराक के पास खतरनाक हथियार होने का सफेद झूठ फैलाया गया। बाद में अमेरिका ने इसे अपनी ग़लती मानते हुए कहा कि इस झूठ के लिए इतिहास की अदालत में न्याय होगा। दुर्भाग्य से देश में भी राजनीतिक मिथ्यारोपों का दौर चल रहा है। इससे बचना चाहिए और सत्य और तथ्यपरक बनना चाहिए। उन्होंने पंडित नेहरू पर लग रहे विभिन्न आरोपों पर तथ्यपरक उत्तर दिए।
उन्होंने कहा कि यह आरोप लगाना कदापि उचित नहीं कि उनका धर्मनिरपेक्षता का विचार पश्चिम से प्रभावित है। दरअसल, भारतीय संविधान बहुसंख्यवाद को पनपने नही दे सकता, जिसमें अल्पसंख्यकों को भी पूर्ण अधिकार मिले हैं। अलबत्ता, वर्तमान दौर में लोग हमें बहुसंख्यावाद की और धकेल रहे हैं, जबकि पश्चिमी देश हमारी धर्मनिरपेक्षता की ओर देख रहे हैं।
उन्होंने नेहरू द्वारा कारावास के दौरान लिखित 'डिस्कवरी ऑफ इंडिया' के बारे में बात की। उन्होंने कहा कि परंपरा को एक बार में नहीं सीखा जा सकता है, इसे प्रत्येक व्यक्ति को अपने स्वयं के विचारों के माध्यम से पुनर्स्थापित करना होगा। भारत को जानने के लिए 'डिस्कवरी ऑफ इंडिया' को एक बार ही नहीं, बल्कि कई बार पढ़ना चाहिए, क्योंकि भारत हमेशा परिवर्तनशील देश रहा है। नेहरू ने महसूस किया था कि तकनीक आध्यात्मिक रिक्तता का कारण बन सकती है, इसीलिए कला और संस्कृति को अक्षुण्ण बनाए रखने के लिए उन्होंने देशभर में अकादमियां और कल्चरल सेंटर भी बनवाए।
नेहरू आधुनिक भारत के निर्माता : डॉ. हबीब
संगोष्ठी के प्रथम सत्र में 'नेहरू एवं राष्ट्रीय निर्माण' विषय पर बोलते हुए प्रसिद्ध इतिहासकार, डॉ. सैयद इरफान हबीब ने कहा कि नेहरू एवं उनके कार्यों को समझने के लिए हमें सबसे पहले उनके समय की आर्थिक, राजनीतिक व सामाजिक परिस्थितियों को समझना होगा। उस समय देश 200 वर्ष के औपनिवेशिक शोषण का सामना कर चुका था। 1947 में देश की जीडीपी 0.72 प्रतिशत थी, 80 प्रतिशत अशिक्षा थी और 90 प्रतिशत वस्तुओं का आयात किया जा रहा था। पंडित नेहरू द्वारा किए गए विकास की बात करते हुए डॉ. हबीब ने बताया कि नेहरू आधुनिक भारत के डीएनए में हैं। आजादी के तीन वर्ष बाद ही नेहरू ने 1950 में खड़गपुर में देश के पहले आईआईटी की स्थापना की। वर्ष 1953 में उन्होंने विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) की नींव रखी। इसके अलावा उनके द्वारा हिमाचल प्रदेश में भाखड़ा-नांगल बांध का निर्माण भी कराया गया। साहित्यकार डॉ. दुर्गा प्रसाद अग्रवाल ने संगोष्ठी का संचालन किया।